मुसलमानों के साथ ठगी
बिहार कास्ट सर्वे की रिपोर्ट में 17.7फीसद मुसलमानों की संख्या बताई गयी है जिसमें से करीब 5 फीसदी सवर्ण और बाकी का पिछड़ा मुस्लिम है. गौरतलब है कि इस्लाम अपनी बुनियाद में जाति की बात नहीं करता. हालांकि, हिन्दुस्तान में भी मुसलमानों के बीच जातियां है, उपजातियां है, जम कर जातीय भेद है. इस तथ्य को देश की दो कमेटी (सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्रा कमिशन) समेत पसमांदा मुस्लिम महाज के संस्थापक और पूर्व राज्यसभा सदस्य अली अनवर अंसारी ने बार-बार अपनी रिपोर्टों, किताबों के जरिये सामने रखा है. अली अनवर अंसारी ने एक बार कहा था कि आर्टिकल 341 के तहत आज भी क्यों मुसलमानों के साथ नाइंसाफी हो रही है. उनकी पुरानी मांग है कि इस आर्टिकल के तहत वर्णित 1950 वाले राष्ट्रपति अध्यादेश को भी खारिज कर दिया जाए जो मुसलमानों को शेड्यूल कास्ट स्टेट्स देने से रोकता है जबकि शुरुआत में सिर्फ हिन्दुओं और बाद में संशोधन के जरिये नव बौद्धों और सिखों को भी शेड्यूल कास्ट स्टेट्स का दर्जा दे दिया गया है. अंसारी अपनी नई पुस्तक “संपूर्ण दलित आन्दोलन: पसमांदा तस्सवुर” में इस मुद्दे को बहुत ही बारीकी से रखते हुए समझाते हैं कि इस वक्त देश में भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति क्या है, जिसे पहले भी सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्रा कमीशन ने अपनी रिपोर्ट के जरिये बता दिया है. तो सवाल है कि क्या बिहार में राजद और जदयू) 17 फीसदी मुसलमानों को सिर्फ अपना वोट बैंक बनाएंगी या फिर उनके लिए कुछ ठोस कदम भी उठाएगी, जैसा कि रंगनाथ मिश्रा कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश किया है. इस सिफारिश में धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को 10फ़ीसदी आरक्षण देने और 1950 प्रेशीडेंशियल आर्डर को हटाने की बात कही गयी है. क्या ऐसे किसी भी सिफारिश पर बिहार की सरकार कोई कदम उठाएगी?
बिहार में भी मुसलमानों को 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण का लाभ मिल रहा है. लेकिन, 17.7फीसदी मुसलमानों में जो करीब 12फीसदी मुसलमान है, वही पिछड़े हैं और उन्हें इसी कोटे से लाभ मिल रहा है. बहरहाल, भोपाल में जब प्रधानमंत्री मोदी पसमांदा मुसलमानों की सामाजिक-शैक्षणिक-आर्थिक सच्चाई को स्वीकार कर रहे थे तब क्या वे भूल गए थे कि रंगनाथ मिश्रा कमीशन ने 2007 में (यूपीए सरकार द्वारा बनाया गया कमीशन) ही अपनी रिपोर्ट के जरिये मुस्लिमों की हालत हिन्दू दलितों के बराबर बता दी थी और इसके लिए 10 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था करने की बात कही थी. तो सवाल यही है कि जब प्रधानमंत्री मुस्लिमों की दुर्दशा के लिए चिंतित होते हैं या बिहार सरकार कास्ट सर्वे को जनता के विकास के लिए जब आवश्यक बताती है और मुसलमानों तक के जातियों की गणना कर लेती है तब क्या प्रधानमंत्री जी हों या बिहार सरकार, मुसलमानों की भलाई के लिए रंगनाथ मिश्रा कमीशन द्वारा सुझाए सिफारिशों पर भी अमल करेंगे?
राष्ट्रपति अध्यादेश, 1950 का उल्लेख भारतीय संविधान में है. यह अध्यादेश कहता है कि सिर्फ हिन्दू धर्म के दलितों को ही एससी स्टेट्स दिया जा सकता है. वैसे, जब वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने तब उन्होंने इस सूची में बौद्ध दलितों को भी शामिल किया जिन्हें नव बौद्ध कहा गया. इससे पहले सिख दलितों को भी इस सूची में शामिल कर लिया गया था. इसके बाद इस लिस्ट से बाहर रह गए थे मुस्लिम, ईसाई, जैन और पारसी. मनमोहन सिंह सरकार ने जब सच्चर कमेटी बनाई थी तब इस कमेटी ने जो रिपोर्ट दी, वह मुस्लिम समुदाय की बदतर सामाजिक-आर्थिक-शैक्षणिक स्थिति को बताती थी. इसके बाद, मनमोहन सिंह सरकार ने ही रंगनाथ मिश्रा कमीशन का गठन किया, जिसने 2007 में अपनी रिपोर्ट दी. इस रिपोर्ट में साफ़ कहा गया है कि मुसलमानों के बीच भारी जातिगत भेदभाव है और मुस्लिम समुदाय के भीतर जो अतिपिछड़ी जातियां हैं, उनकी हालत हिन्दू दलितों से भी बदतर है और इसी आलोक में इस कमीशन ने उनके लिए 10 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की. साथ ही, इस कमीशन ने 1950 प्रेसिडेंशियल ऑर्डर को हटाने की भी सिफारिश की क्योंकि कमीशन का मानना था कि यह अध्यादेश धार्मिक आधार पर लोगों की सामाजिक-शैक्षणिक-आर्थिक स्थिति की सच्चाई को देखे बिना भेदभाव करता है. सवाल यह है कि जातीय सर्वेक्षण से बिहार के मुसलमानों या देश के मुसलमानों को क्या मिलने जा रहा है, इसका भी सहज अंदाजा लगाया जा सकता है.@nirbhaypathik