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प्रसंगवश -लालू नीतीश की चाल में फंसे राहुल

by zadmin

प्रसंगवश –लालू नीतीश की चाल में फंसे राहुल 

9 अक्टूबर को दिल्ली में कार्यसमिति की बैठक में जाति आधारित जनगणना को मुख्य चुनावी मुद्दा बनाने का फैसला कर कांग्रेस ने  भारतीय राजनीति में जातिवाद का जहर घोल कर देश को गुमराह कर रही है. जिस जातिवाद को पंडित नेहरू और उसके बाद इंदिरा गांधी ने दुत्कारा था और कांग्रेस पार्टी  को नारा दिया था जात पर पात पर मुहर लगेगी हाथ पर. लेकिन राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस अपने इतिहास को ही खत करने पर उतारू है. जातीय आधारित जनगणना की आड़ में भारतीय समाज को विभाजित करने की नयी तिकड़म में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ कांग्रेस से आगे राजस्थान के मुख्य मंत्री गहलोत ने कद बढ़ा दिया है. कार्य समिति की बैठक से थूक पहले उन्होंने राज्य में जातीय जनगणना  के लिए सरकारी अधिसूचना जारी करवा दिया. लेकिन अब चुनाव की घोषणा हो चुकी है तो यह नोटिफिकेशन चुनावी मुद्दा बनकर रहेगा.  कांग्रेस ने जब जाति आधारित जनगणना का राग अलापना शुरू किया था, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि कांग्रेस में अब सोचने समझने वाले नेता नहीं रहे, इसलिए कांग्रेस ने नीतियां बनाने का काम आउटसोर्स करना शुरू कर दिया है| उनके कहने का मतलब यह था कि हिन्दू समाज को जातियों में विभाजित करने का फार्मूला कांग्रेस ने लालू यादव और नीतीश कुमार से उधार लिया है, जो 1989 से ही जाति आधारित राजनीति कर रहे हैं| लालू यादव, मुलायम सिंह यादव और शरद यादव जैसे नेताओं के दबाव में ही वी.पी. सिंह सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करके इन सब नेताओं के हाथ में जातिवादी राजनीति का हथियार सौंपा था| जबकि कांग्रेस ने ऐसी किसी भी रणनीति और नीति का हमेशा विरोध किया, जो देश और समाज को जाति या धर्म के आधार पर टुकड़ों में बांटती हो|
आज जो नारा राहुल गांधी लगा रहे हैं, वह पहले डॉ. अम्बेडकर और बाद में कांशीराम लगा चुके है, लेकिन दोनों ही बार कांग्रेस ने इस नारे का विरोध किया था| आज़ादी के बाद डॉ. अम्बेडकर ने जब यह कहा कि जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी होनी चाहिए, तो जवाहर लाल नेहरू ने 1951 में यह कहते हुए जाति आधारित जनगणना करवाने से इंकार कर दिया था कि इससे समाज में बिखराव हो जाएगा| इसके बाद जवाहरलाल नेहरू ने योजनाबद्ध तरीके से अंबेडकर को 1952 का लोकसभा चुनाव हरवाया, फिर 1953 का उपचुनाव भी हरवाया| जवाहर लाल नेहरू ने मंत्रीमंडल के भीतर से दबाव पड़ने पर ओबीसी जातियों की पहचान के लिए काका कालेलकर आयोग बनाया था| इस आयोग ने 1955 में दी अपनी रिपोर्ट में 2399 पिछड़ी जातियों की पहचान की| लेकिन जवाहर लाल नेहरू ने रिपोर्ट में खामियां बताकर सिफारिश की फाईल कूड़ेदान में फेंक दी| इसका कारण यह था कि कांग्रेस का आधार अगड़ी जातियों, दलितों, आदिवासियों और मुस्लिमों में था| उसने बहुसंख्यक पिछड़ी जातियों की कभी परवाह ही नहीं की| मोरारजी देसाई के नेतृत्व में पहली गैर कांग्रेसी सरकार ने 1978 में पिछड़ी जातियों को आरक्षण देने के लिए मंडल आयोग का गठन किया था| जनता पार्टी की इस सरकार में भाजपा (जनसंघ के रूप में) भी शामिल थी| 1980 में इंदिरा गांधी की सरकार वापस आ गई, मंडल आयोग ने अपनी सिफारिशें इंदिरा गांधी सरकार को सौंपी थी| तो उन्होंने पिछड़ी जातियों को आरक्षण की सिफारिश वाली मंडल आयोग की फाईल कूड़ेदान में फेंक दी| 1990 में जब विश्वनाथ प्रताप सिंह मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू कर रहे थे, तो राजीव गांधी ने मंडल कमीशन की ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने वाली सिफारिशों को लागू करने का विरोध किया था| जबकि कांग्रेस के कुछ नेताओं ने उस समय उन्हें समझाया था कि आरक्षण का विरोध कांग्रेस के लिए नुकसानदायक साबित होगा| वही हुआ भी, उत्तर प्रदेश और बिहार में जाति आधारित राजनीति के चलते कांग्रेस का वर्चस्व खत्म हो गया| संयोग देखिये  जिस कांग्रेस ने देश को एकजुट रखने के लिए जाति आधारित राजनीति का हमेशा विरोध किया, सत्ता गवां कर भी विरोध जारी रखा, वही कांग्रेस अब उन्हीं जातिवादी नेताओं के चंगुल में फंस कर जाति आधारित जनगणना को मुख्य चुनावी मुद्दा बना रही है| 
असल में पिछले लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ने मोदी सरनेम पर विवादास्पद टिप्पणी की थी। राहुल गांधी की सज़ा  पर सुप्रीमकोर्ट ने रोक जरुर लगाई है, उन्हें बरी नहीं किया है| ओबीसी समाज के अपमान का दाग अभी भी उनके चेहरे पर चिपका हुआ है| इसलिए जब इंडी एलायंस की मुंबई  बैठक में लालू यादव और नीतीश कुमार ने जाति आधारित जनगणना को इंडी  गठबंधन  के एजेंडे पर रखने का प्रस्ताव रखा, तो एलायंस में विरोध के बावजूद राहुल गांधी ने इसे लपक लिया|और  कम से कम चार नेताओं के विरोध के बावजूद इसे इंडी गठबंधन  का एजेंडा घोषित कर दिया, और बाद में कांग्रेस ने इसे अपने एजेंडे पर ले लिया| 9 अक्टूबर को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के बाद जब राहुल गांधी से पूछा गया कि क्या जाति आधारित जनगणना पर इंडी  गठबंधन   में सहमति है, तो उन्होंने कहा कि दो-चार दल अगर इसके खिलाफ भी होंगे, तो कोई फर्क नहीं पड़ता, कांग्रेस फासीवादी पार्टी नहीं है| सवाल यह है कि क्या चुनावों में जाति आधारित जनगणना का कांग्रेस और जाति आधारित अन्य राजनीतिक दलों का कार्ड भाजपा पर भारी पड़ेगा| क्या पिछले लोकसभा चुनावों में भाजपा को मिला 44 प्रतिशत पिछड़ों का समर्थन घट जाएगा| दूसरा सवाल यह है कि अगर चुनावों में जाति आधारित जनगणना का मुद्दा हावी हो जाता है, तो उसका फायदा कांग्रेस को होगा या जाति आधारित उन राजनीतिक दलों को होगा, जिन्होंने कांग्रेस को जाति आधारित जनगणना को मुद्दा बनाने को मजबूर किया| पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी देवेगौडा ने एनडीए में शामिल होने के बाद एक इंटरव्यू में कहा है कि कांग्रेस उन्हीं जाति आधारित राजनीतिक दलों के जाल में फंस गई है, जिन्होंने जाति आधारित राजनीति करके कांग्रेस को कमजोर किया| अब इसका मतलब तो यही है कि कांग्रेस को नहीं, उन्हीं दलों को ही फायदा होगा, जो अब तक ओबीसी की राजनीति करते आए हैं| वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि उनकी नजर में गरीब और अमीर दो ही जातियां है, कोई ब्राह्मण, ठाकुर और बनिया भी गरीब हो सकता है, और कोई ओबीसी, दलित और आदिवासी भी अमीर हो सकता है| इसलिए उन्होंने आर्थिक आधार पर दस फीसदी आरक्षण दिया और उनकी सरकार ने पिछले साढ़े नौ साल में बिना किसी भेदभाव के सबके विकास के लिए नीतियाँ बनाई, जिसका लाभ सभी जातियों और धर्मों के गरीबों को मिला और वे इसी नीति पर चलते रहेंगे|
अश्विनी कुमार मिश्र 

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