Home अपराध प्रिडिक्टिव पुलिसिंग से अब पूर्वानुमान से कंप्यूटर रोक सकेंगे अपराध

प्रिडिक्टिव पुलिसिंग से अब पूर्वानुमान से कंप्यूटर रोक सकेंगे अपराध

by zadmin

अब कंप्यूटर से लग सकेगा अपराध का पूर्वानुमान,कई राज्य पुलिस कर रही का तकनीक उपयोग 

बात साल 2013 की है. शिकागो के रॉबर्ट मेक्डेनियल घर पर बैठे टेलिविज़न देख रहे थे जब अचानक पुलिस कर्मचारी आए. उन्होंने चेतावनी दी कि उनकी नज़र रॉबर्ट पर है.

रॉबर्ट जोखिम भरे इलाक़े में रहते थे, कुछ महीनों पहले यहां उनके एक दोस्त की मौत गोली लगने से हुई थी. पुलिसकर्मी ने बताया कि उनका विभाग प्रिडिक्टिव पुलिसिंग के लिए एक तरह के सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर रहा है जिसके अनुसार रॉबर्ट को गोली लगने या फिर उनके किसी को गोली मारने की आशंका है.

प्रिडिक्टिव पुलिसिंग, अपराध होने से पहले उसे रोकने की तकनीक है. इसमें सॉफ्टवेयर के ज़रिए डेटा का विश्लेषण कर उन लोगों की पहचान की जाती है जिनके अपराध करने की आशंका अधिक होती है. इस तकनीक का इस्तेमाल ‘माइनॉरिटी रिपोर्ट’ जैसी साइंस फिक्शन फ़िल्मों में देखा गया था

भारत के दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, तेलंगाना समेत कुछ राज्यों की पुलिस भी इस तकनीक का इस्तेमाल कर रही है.तो दुनिया जहान में इस सप्ताह हम सवाल कर रहे हैं कि क्या अपराध होने से पहले उसे रोकने के लिए कंप्यूटर पर निर्भर किया जा सकता है? और जिन जगहों पर प्रेडिक्टिव पुलिसिंग का इस्तेमाल किया गया क्या वहां अपराध दर में कमी देखी गई?

अपराधी और अपराध का अनुमान

हमारे पहले एक्स्पर्ट हैं, जेफ़ ऐशर जो एक अपराध विश्लेषक है. जेफ़, प्रेडिक्टिव कम्प्यूटर प्रोग्राम यानी भविष्य का अंदाज़ा लगाने वाले कंप्यूटर प्रोग्राम पर काम करते हैं. पुलिस ने रॉबर्ट मेक्डैनियल मामले में इसी प्रोग्राम का इस्तेमाल किया था.

शिकागो में 2013 तक आपसी गिरोहों की रंजिश में काफ़ी खून-खराबा होता था. यहां पुलिस ने प्रेडिक्टिव कंप्यूटर प्रोग्राम का उपयोग शुरू किया. दावा यह किया गया कि यह प्रोग्राम गणना करके बता सकता है कि अगला अपराधी कौन होगा.

जेफ़ ऐशर कहते हैं, “इसके मूल में जो सिद्धांत काम करता है वो सबसे अधिक जोखिम और आशंका वाले लोगों का पता लगाना. इसमें आप उन लोगों को लेते हैं जो किसी गोलीबारी की घटना में सबसे ज़्यादा शामिल रहे या पीड़ित रहे. उन्हें या उनके साथ जिन लोगों को गिरफ्तार किया जाता है उन्हें भी अधिक जोखिम वाले लोगों में शामिल किया जाता है.”

इसे ऐसे समझते है. बंदूक रखने वालों, निशानेबाज़ों और पीड़ितों को कंप्यूटर प्रोग्राम एक साथ रखता है. ऐसा इसलिए क्योंकि वे अक्सर एक ही गैंग से होते हैं या एक जैसे समूहों से होते हैं जो बदला लेना चाहते हैं. इनकी गिरफ्तारी का स्टेटस विशेष रूप से बनाए गए एल्गोरिद्म में डाला जाता है. इन नामों को रणनीति तैयार करने वाले विषयों की सूची पर 1 से 500 तक अंक दिए जाते हैं. इस सूची को शिकागो में ‘शिकागो हीट लिस्ट’ कहते हैं. इसी आधार पर जोखिम का आकलन किया जाता है.

लेकिन सवाल ये है कि यह तरीका कितना प्रभावी है?

जेफ़ ऐशर कहते हैं, “इससे हम उन लोगों की पहचान कर सकते हैं जो बाकियों के मुक़ाबले ज़्यादा जोखिम में हैं. जैसे शिकागो हीट लिस्ट में जो लोग सबसे अधिक जोखिम वाले थे, उनमें से एक तिहाई गोलीबारी में मारे गए. हालांकि ये ज़रूरी नहीं कि अपराध होने ही वाला है या लिस्ट में शामिल व्यक्ति हिंसा में भी ज़रूर शामिल होगा. लेकिन यह फिर भी अच्छा है क्योंकि इससे आप अनुमान लगा सकते हैं. आपको समझना होगा कि आप ऐसे शहर में हैं जहां 2016 में 4,000 से अधिक लोगों की जान गोली लगने से गई थी.”

जब पहली बार 2013 में ये लिस्ट बनाई गई थी, तब उसमें 500 से कम नाम थे. आज इसमें चार लाख से अधिक लोगों के नाम हैं और इसके असर का अंदाज़ा लगाना वास्तव में मुश्किल है.

लेकिन अगर आपने कुछ नहीं किया और आपका अपना नाम लिस्ट में है, तो क्या ये पता लगाया जा सकता है कि आपकी पहचान अधिक जोखिम वाले व्यक्ति के रूप में क्यों हुई?

ऐशर के अनुसार, “नहीं, इस मामले में आपको निराश होना होगा क्योंकि आप यह पता नहीं लगा सकते कि आपका स्कोर क्या है. ऐसा कोई तरीका नहीं और मुझे यह भी नहीं पता है कि आप पुलिस विभाग से रिकॉर्ड मांग सकते हैं या नहीं. दूसरा ज़रूरी मुद्दा है, एल्गोरिद्म में पारदर्शिता की कमी. मुझे लगता है कि हिंसा में कमी लाने के लिए ज़रूरी है कि लोगों को पता हो कि उनसे पूछताछ क्यों की जा रही है, उन्हें लिस्ट में कैसे स्कोर दिया जा रहा है और जोखिम का स्तर कैसे तय हो रहा है.”

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