Home विविधारोचक जानकारी रावण की नाभि में अमृत किसने स्थापित किया था?

रावण की नाभि में अमृत किसने स्थापित किया था?

by zadmin

रामायण की बात हो और रावण का जिक्र न हो ऐसा कैसे हो सकता है। ऐसा कहा जाता है कि रावण की कमजोरी उसकी नाभि में छिपी थी। इस बारे में सिर्फ उसका परिवार ही जानता था।

कहते हैं रावण ने अपनी बहन शूर्पणखा और भाइयाें कुंभकरण तथा विभीषण के साथ ब्रह्मा जी का तप किया था। उससे खुश होकर ब्रह्माजी ने तीनों से वरदान मांगने को कहा। तब विभीषण ने ज्ञान, शूर्पणखा ने सुंदरता और कुंभकरण ने निंद्रा में लीन होने का वर मांगा था। लेकिन रावण ने अमृत और ज्ञान का वरदान मांगा था।

अमृत उसने अपनी नाभि में रख लिया था ताकि उसकी मृत्यु न हो सके। रावण के आख्यानों में उसके मर्म स्थानों का उल्लेख मिलता है। जिसके अनुसार रावण की मृत्यु किसी प्रकार के आयोजन अथवा उसके शरीर के किसी विशेष अंग को भेदन करने से ही हो सकती है।

उत्पत्स्यन्ति पुनः शीघ्रोमत्याह भगवानजः।

नाभिदेशेअमृतं तस्य कुण्डलाकार संस्थितम्।।

तच्छोषयानलास्त्रेण तस्य मृत्यततो भवेत।

विभीषण वचः श्रुत्वा रामः श्रुत्वा रामः शीघ्रपराकमः।।

पावकास्त्रेण संयोज्य नाभिंविव्याध राक्षसः।

यानि जब राम-रावण युद्ध अंतिम समय पर पहुंचा तो श्रीराम ने रावण पर ‘बाणों की बारिश’ कर दी। किंतु उसके सिर और भुजाएं कटने पर भी वे फिर से प्रकट हो जाते थे।

श्रीराम इस चिंता में पड़ गए कि आखिर उसे किस तरह से मारा जाए। तब विभीषण ने कहा कि हे राम, ब्रह्माजी ने इसे वरदान दिया है कि इसकी भुजाएं और मस्तिष्क बार- बार कट जाने के बाद भी पुनः उग आएंगे।

रावण की नाभि में अमृत घट है इसे आप आग्नेय शस्त्र से सुखा दीजिए तभी इसकी मृत्यु संभव है। विभीषण की यह बात सुन राम ने ऐसा ही किया और रावण की नाभि काे लक्ष्य करके में तीर चलाया जिसके कारण उसकी मृ्त्यु हो गई।

You may also like

Leave a Comment