कोरोना महामारी में स्वास्थ्य की अनदेखी से आंखों की समस्याए बढ़ी
आनंद पांडेय
ठाणे,3 मार्च: कोविड महामारी के कारण हुए लॉकडाउन में देर से इलाज और जीवनशैली में बदलाव के कारण लोगों में आंखों की समस्याओं की गंभीरता और रुग्णता बढ़ गई है। डॉ अग्रवाल्स आई हॉस्पिटल के वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञों ने कहा कि इस महामारी से बुजुर्गों की आबादी विशेष रूप से प्रभावित हुई है। कोविड की डर से अस्पताल नहीं जाने वाले 65 साल से अधिक उम्र के रोगियों में हाल के महीनों में परिपक्व मोतियाबिंद के मामलों में पांच गुना वृद्धि हो गयी है। उनके अनुसार, आंखों से दिखाई नहीं देने सहित गंभीर जटिलताओं के साथ आंखों के अस्पतालों में आने वाले लोगों की संख्या हाल के दिनों में कई गुना बढ़ गई है।
नवी मुंबई के डॉ अग्रवाल आई हॉस्पिटल की क्षेत्रीय मेडिकल डायरेक्टर डॉ वंदना जैन ने कहा,“2019 के आखिरी तीन महीनों में जब महामारी ने पूरी तरह से अपना कहर नहीं बरपाया था। हमारे पास आने वाले मोतियाबिंद के सभी रोगियों में से सिर्फ 10 प्रतिशत परिपक्व मोतियाबिंद से पीड़ित थे। लेकिन वर्ष 2020 के अतिम तीन महीनों में, यह आंकड़ा पांच गुना बढकर 50 प्रतिशत तक हो गया। इसका कारण यह है कि पिछले एक साल के दौरान, मरीज इस बात को लेकर चिंतित थे कि अस्पताल जाने पर वे कोरोनावायरस के संपर्क में आ जाएंगे। हमने महामारी से पहले अति-परिपक्व मोतियाबिंद के ऐसे मामले नहीं देखे थे।”
डॉ वंदना जैन ने कहा‚ “ऐसे अधिकांश लोग जिन्हें पहले से आंखों की समस्याएं थीं‚ वे महामारी के दौरान डॉक्टरों के साथ फॉलो-अप को नजरअंदाज करते रहे, जिससे उनकी स्थिति खराब हो गयी। जिन्हें हाल में आंखों की समस्याएं हुई उन्होंने भी डॉक्टरों से परामर्श करने के लिए इंतजार किया, जिसके कारण उनकी आंखों की रोशनी खत्म हो गई या अन्य गंभीर परिणाम हुए। हालांकि अब अस्पताल आने वाले रोगियों की संख्या बढ़ रही है।”
डॉक्टरों के अनुसार यह प्रभाव केवल मोतियाबिंद और बुजुर्ग आबादी तक सीमित नहीं था। डॉ वंदना जैन ने कहा, “डिजिटल आई स्ट्रेन के कारण गंभीर ड्राई आईज के मामले महामारी से पहले 10फीसदी से अब 30फीसदी तक बढ़ गए, क्योंकि घर से काम करने वाले लोगों को लंबे समय तक डिजिटल स्क्रीन देखने की आदत हो गई। हमने रोगियों में ग्लूकोमा के मौजूदा मामलों को बिगड़ते देखा है क्योंकि वे नियमित रूप से फॉलो-अप के लिए नहीं आए थे। मधुमेह वाले लोगों ने अपनी आंखों की जांच को नजरअंदाज कर दिया, जिससे उनके रेटिना में गंभीर जटिलताएं पैदा हो गईं। महामारी का बहुत बड़ा सामाजिक-आर्थिक प्रभाव भी पड़ा है। हमारे पास आने वाले मोतियाबिंद के कई मरीज़ पैसे बचाने के लिए केवल एक आँख में ऑपरेशन करवा रहे हैं। ”
डॉ वंदना जैन ने कहा‚ “50 वर्ष से अधिक उम्र के मधुमेह के रोगियों को साल में कम से कम एक बार आंखों की जांच अवश्य करानी चाहिए, क्योंकि उनमें से 30 प्रतिशत मधुमेह रोगियों में डायबेटिक रेटिनोपैथी सहित डायबेटिक नेत्र रोग होने का खतरा रहता है। आंखों की जांच और इलाज में किसी भी प्रकार की देरी से अंधापन सहित अधिक गंभीर जटिलताएं हो सकती हैं। ग्लूकोमा के रोगियों के लिए भी यह सही है। यदि उनकी स्थिति अस्थिर है या उनमें आंखों में दर्द या दृष्टि में बदलाव जैसे असामान्य लक्षण विकसित होते हैं, तो उन्हें तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए।”