दिनचर्या में शामिल है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस-प्रो. दुर्गेश पंत
भोपाल(निर्भय पथिक):आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस दुनिया की श्रेष्ठ तकनीकों में से एक है। यह दो शब्दों आर्टिफिशियल और इंटेलिजेंस से मिलकर बनी है। इसका अर्थ है मानव निर्मित सोच शक्ति। इस तकनीक की सहायता से ऐसा सिस्टम तैयार किया जा सकता है, जो मानव बुद्धिमत्ता यानी इंटेलीजेंस के बराबर होगा। इस तकनीक के माध्यम से अल्गोरिदम सीखने, पहचानने, समस्या-समाधान, भाषा, लॉजिकल रीजनिंग, डिजिटल डेटा प्रोसेसिंग,बायोइंफार्मेटिक्स तथा मशीन बायोलॉजी को आसानी से समझा जा सकता है। इसके अलावा यह तकनीक खुद सोचने, समझने और कार्य करने में सक्षम है। यह विचार उत्तराखंड विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के महानिदेशक प्रो. दुर्गेश पंत ने व्यक्त किये। वह मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद की ओर से 16वें विज्ञान मंथन यात्रा का समापन समारोह में बोल रहे थे.
इसके बाद उन्होंने बच्चों को बताया कि आज के समय में हर एक इंसान की जीवन में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मौजूदगी है। उदाहरण के माध्यम से उन्होंने बताया कि आप किसी से मोबाइल कॉल पर जूतों और उनके ब्रांड्स के बारे में चर्चा करते हैं। इसके बाद किसी साइट या सोशल नेटवर्किंग साइट का उपयोग करते हैं तो इसमें उस प्रकार के जूते और उनके ब्रांड्स के विज्ञापन दिखाई देने शुरू हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में इंसान ने इतनी तरक्की की है उसी की तरह सोचने-समझने और अपने दिमाग का इस्तेमाल करने वाला एक चलता फिरता मशीन रोबोट आदि के बारे में सोच रहा है। जो बिल्कुल इंसानों की तरह काम करने की क्षमता रखता हो, इसी एडवांस टेक्नोलॉजी से बनने वाली मशीन को ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कहा जाता है।
प्रो. पंत ने बताया कि एआई का उपयोग कई तरीके से होता है इसमें वेदर फॉरकास्टिंग भी शामिल है। हम एआई के माध्यम से ही आज के समय मे आने वाले दिन में क्या मौसम होने वाला है इसका पता कर पाते हैं। इसी के माध्यम से हम देहरादून में बैठे हुए लंदन के मौसम की जानकारी प्राप्त कर पाते हैं। एआई की मौजदूगी हमारे लिए हानिकारक भी है, क्योंकि इसकी वजह से अब लोग इंसानों की जगह कई टेक्नोलॉजी की मदद से बहुत सारे काम संभव हो जाते हैं। एआई जितना हानिकारक है उतना ही उपयोगी और महत्वपूर्ण है।
. इससे पहले परिषद के महानिदेशक डॉ. अनिल कोठारी ने इस वादे के साथ विदाई ली कि वे अगले साल वृहद स्वरूप में इस यात्रा का आयोजन करेंगे। अंतिम दिन विशेष रूप से बच्चों को नई टेक्नोलॉजी जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग पर बात हुई।
रीजनल साइंस सेंटर भोपाल के प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ. साकेत सिंह कौरव ने बच्चों से रूबरू होते हुए उनके अंदर विज्ञान के प्रति दृष्टिकोण पैदा करने की कोशिश की। सबसे पहले डॉ साकेत ने बच्चों को छोटे-छोटे मनोरंजक गेम खिलाए और उसके जरिए बच्चों को सोचने के लिए मजबूर किया। बच्चों को बताया कि आपके मन में विज्ञान के प्रति रुचि तब जागेगी, जब आपके मन में किसी विषय को लेकर जिज्ञासा जागेगी। इससे आप उसके वस्तु के पीछे लगी साइंस या फिर टेक्नोलॉजी के बारे में सोचने पर मजबूर होंगे। उन्होंने कहा कि जैसे ही आपने इसके बारे में सोचना शुरू किया आप खुद से ही इसकी दुनिया में प्रवेश कर जाएंगे।
डॉ. साकेत ने बताया कि सूरज के उगने से लेकर चांद के निकलने तक में भी साइंस का जुड़ाव है। जब तक आप किसी के बारे में सोचना नहीं शुरू करेंगे आप इस विज्ञान की यात्रा में शामिल नहीं हो पाएंगे।
कार्यक्रम के अंत में मप्र विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. विकास शेंडे ने साइंस पॉपुलराइजेशन एक्टिविटीज इन मध्यप्रदेश विषय पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि कुछ बच्चे विज्ञान, गणित, अंग्रेजी से डरते हैं। जबकि बच्चों को इन विषयों से डरने के बजाय उनमें रुचि लेना चाहिए। उन्होंने उदाहरण के तौर पर बताया कि जब आप गणित के सवाल सॉल्व करने लगते हैं तो उसमें आपको मजा आने लगता है। क्योंकि मैथ्स को जितना सॉल्व करेंगे वह विषय उतना ही इंटरेस्टिंग बनता जायेगा। इस दौरान उन्होंने कहा कि हमारा उद्देश्य है कि विज्ञान के लोकव्यापीकरण के लिए वृहद स्तर पर काम करें। इसलिए उन्होंने बच्चों से आग्रह किया कि यदि वे प्रमुख दिवस पर विज्ञान से जुड़ी कोई गतिविधि अपने स्कूल में करना चाहते हैं तो वे संपर्क कर सकते हैं। डॉ. शेंडे ने कहा कि विज्ञान को आगे बढ़ाने में भावी पीढ़ी का सबसे बड़ा योगदान है। आज आप बाल वैज्ञानिक हो और जरूरी है कि आप खुद से सवाल पूंछे। अगर आप खुद से सवाल करेंगे तो निश्चित ही इसका लाभ आपको मिलेगा। अच्छा वैज्ञानिक वही होता है जो सवाल पूछता है। अंत में उन्होंने बच्चों से एआई और मशीन लर्निंग के डेवलपमेंट पर भी बात की। अंत में समन्वयक वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक निरंजन शर्मा ने सभी का आभार व्यक्त किया। इस चार दिवसीय 16वें विज्ञान मंथन यात्रा में 52 जिलों के1000 छात्रों ने हिस्सा लिया.