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खरी-खरी
लापरवाही ले गयी, निर्दोषों की जान।
पुल लहराकर गिर गया, जैसे कोई मचान।।
जैसे कोई मचान, मरम्मत कैसी की थी।
इतनी अधिक भीड़ की, अनुमति किसने दी थी।
मिलीभगत से होती, है अपनी मनचाही।
सख़्त सजा हो जिसने, की यह लापरवाही।।
अशोक वशिष्ठ