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अशोक ‘अंजुम
हुस्न की आरजू में खड़े हैं
जानेमन हम भी क्यू में खड़े हैं
प्यार तेरा है वातानुकूलित
हम क्यूं वर्षों से लू में खड़े हैं ?
पीछे वाले तो पहुंचे शिखर पे
हम तो कब से ‘शुरू’ में खड़े हैं
इस कदर घर में किच-किच है यारों
है भरम जैसे- ‘जू’ में खड़े हैं
दीखते हैं जो सत्ता में ‘अंजुम’
भीगकर क्यूं लहू में खड़े हैं?